AMAN AJ

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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-8


    अध्याय 3
    जंगल में
    भाग-1

    ★★★
    
    आर्य और हिना दोनों जंगल में जा रहे थे। उनके जाने के बाद पीछे आश्रम के दरवाजे बंद कर दिए गए थे, मगर कुछ विद्यार्थी वही मोर्चा डाल कर बैठ गए थे। जब हिना और आर्य वापिस आएंगे तो उन्हें वह दरवाजा दोबारा खोलना था।

    जंगल में पूरी तरह से शांति फैली हुई थी। पहले जहां जंगली जानवरों का शोर आ रहा था वहीं अब किसी भी तरह का शोर नहीं था। बाकी जगहों की तरह इस जगह की जमीनी सतह भी बर्फीली थी। मगर यहां बर्फ की मोटी चादर नही थी। ‌बर्फ की मोटी चादर के नीचे मिट्टी मौजूद थी। हवा का बहाव रुका हुआ था जिसकी वजह से जंगल में एक पत्ता तक नहीं हिल रहा था।

    आर्य नीचे सतह पर मौजूद सूखे पत्तों को रोदतां हुआ बोला “तुमने मुझे अपने भाई के बारे में पहले क्यों नहीं बताया...?”

    हिना अपने आसपास के क्षेत्र पर पैनी निगाह रख रही थी। “मुझे बताने का मौका ही नहीं मिला। सुबह सारा दिन तुम्हें आश्रम की चीजें दिखाने में निकल गया, फिर इसके बाद हम शाम को खाना खाने लगे। ‌ खाना खाने के बाद दीवार पर पहुंची और वहां से तुम बाद में जान हीं गए कि मेरा भाई है...।”

    अचानक झाड़ियों में सरसराहट हुई और दोनों का ध्यान उस तरफ चला गया। अंधेरे जंगल में इस तरह की सरसराहट भी डर पैदा कर रही थी। दोनों ने झाड़ियों को ध्यान से देखा तो पता चला वहां कोई बंदर खुजली कर रहा था। दोनों ने राहत की सांस ली।

    “क्या तुम्हारा भाई यहां आश्रम में आने से खुश नहीं था...” आर्य ने चलते हुए पुछा।

    “तुम यह सवाल क्यों पूछ रहे हो...” हिना ने चौकस निगाहों से एक बार घूम कर 360 डिग्री के व्यू को देखा।

    “तुम्हारा भाई आश्रम छोड़कर चला गया ना इसलिए। हो सकता है वह आश्रम में रहने से खुश ना हो ... जिसने उसे आश्रम से बाहर जाने के लिए बाध्य किया।”

    “जहां तक मैं उसे जानती हूं मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि वह आश्रम में रहकर खुश नहीं। जब हम छः महीने पहले यहां आए थे तब शुरुआत के 3 दिन तक वह बुझा बुझा सा रहा था। लेकिन इसके बाद वह मुझसे भी ज्यादा आश्रम में घुल मिल गया। एक हफ्ते के अंदर-अंदर उसने यह फैसला कर लिया कि वह आश्रम में तलवारबाजी ना सिखकर खाना पकाने का काम करेगा। उसे तलवार जैसी चीजों को करने में आलस आता था, मगर खाने को लेकर वह कभी भी पीछे नहीं हटता। फिर मेरी अक्सर उससे बात होती थी, हम भोजनालय में कभी-कभी मिल लेते थे। वहां मुझे उसने मुझे कभी यह नहीं कहा की उसे आश्रम में कोई परेशानी है या फिर कुछ और।”

    “मतलब वह यहां पूरी तरह से खुशमिजाज वाले व्यक्तित्व में रहता था। किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं थी... ना हीं आश्रम से परेशानी...,अच्छा तुम दोनों के रिश्ते कैसे थे?”

    “हम दोनों के रिश्ते..!!”

    “मतलब भाई बहनों में अक्सर लड़ाई होती है ना। उनमें बनती भी कम है, तो उस हिसाब से तुम दोनों का आपस में रिलेशन कैसा था?”

    “बिल्कुल भी बुरा नहीं था।” हिना के चेहरे पर मुस्कान आ गई “वह बहुत शरारती था, मगर इसके बावजूद हममें बहुत अच्छी बनती थी। हम जब हमारे घर में रहा करते थे, जो की दिल्ली में है वहां रोजाना हम घर के सामान का कचरा करते थे। कभी कुछ तोड़ दिया तो कभी कुछ। ममा पापा डांटते थे तो मिलकर डांट खाई।”

    आर्य खुद में ही सोचने लगा। तभी उनके ऊपर वाले पेड़ों में पतिया जोरदार तरीके से हिली। हिना तुरंत अपनी मुठिया भींचकर थोड़ा सा नीचे झुक गई। वहीं आर्य भी इसी अंदाज में आ गया। दोनों की नजरें ऊपर उस पेड़ की तरफ थी जिनकी पत्तियां हिली थी। वहां अभी अभी एक उल्लू आकर बैठा था।

    “उल्लु है....” हिना ने अपनी मुठिया खोलते हुए कहा।

    “हां... उल्लु ही है..।” आर्य ने भी अपनी मुठिया खोल ली।

    दोनों ही फिर से चलने लगे। आर्य अपनी पुरानी बातों को आगे बढ़ाता हुआ बोला “तुम्हारे भाई को यहां आश्रम में भी कोई समस्या नहीं थी, तुम्हारी भी उनसे अच्छी बनती थी... लेकिन फिर भी वह आश्रम से बाहर गया। किसी से कहासुनी हो तो तुम्हारा भाई कैसे बीहेव करता है...?”

    “उसकी किसी से कहासुनी होती ही नहीं। काफी फ्रेंडली नेचर है। हर किसी से जल्दी दोस्ती कर लेता है। और जो उसके साथ दोस्ती नहीं करता उसके साथ उसकी बातचीत नहीं होती। फिर बाय चांस कभी कहा सुनी हो भी जाए तो इस तरह की हरकतें बिल्कुल नहीं करता। पिछले छह महीनों से तो उसने ऐसा कभी किया नहीं। तो अब क्या करेगा।” हिना के चेहरे के भाव स्थिर हो गए थे।

    आर्य जितनी संभावनाओं के बारे में सोच सकता था उसने सोचा। लेकिन किसी में भी उसे सफलता नहीं मिली। इसके बाद उसने हिना से उसके भाई को लेकर किसी भी तरह की बात नहीं की। काफी देर तक दोनों ऐसे ही चुपचाप चलते रहे। माहौल शांत हो गया था तो हिना को अजीब सा लगा, आर्य भी कुछ पूछ नहीं रहा था तो उसने खुद से बात की दोबारा शुरुआत की।

    “अगर तुम बुरा ना मानो तो तुमसे एक बात पूछूं...” हिना ने हिचकिचाते हुए बोलना शुरू किया “तुम्हारी पर्सनल लाइफ या किसी और के पर्सनल लाइफ के बारे में नहीं है... नॉर्मल बात हैं।”

    आर्य ने कंधे उचकाते हुए जवाब दिया “पूछ लो। बुरा मानने वाली कौन सी बात है। फिर अगर बुरा मान भी गया तो यहां जंगल में कौन सा कहीं जाने वाला हूं।”

    हिना को हल्की हंसी आ गई। आर्य के बोलने चालने का तरीका ऐसा था की उसके चेहरे पर मजाक जैसी चीज सजती नहीं थी। वह बिना मजाक वाली बात करते ही अच्छा लगता था। या ऐसी बात करते हुए जिसमें उसकी तरफ से सवाल हो। भावुक रहने वाला चेहरा भी आर्य पर खासा जचता था। हिना ने सुबह से लेकर अब तक आर्य के इन सभी भावों को हाईलाइट कर रखा था।

    हिना ने अपनी हंसी रोकी और पूछा “मैंने तुम्हें बताया था कि यह जंगल खतरनाक है, तो यहां आने से पहले तुम्हें डर नहीं लगा। मतलब आश्रम में किसी भी लड़के में इतनी हिम्मत नहीं कि वह पहले दिन ही आकर इस जंगल में आने की हिम्मत कर सकें।”

    “डर..!” आर्य ने गंभीरता से कहा “डर सभी को लगता है। तुम्हारे हां कहने से पहले मैं शायद यहां जंगल में आने की कभी नहीं सोचता, लेकिन जब मैंने देखा तुमने जंगल में जाने का फैसला कर लिया तो मैं भी खुद को रोक नहीं सका।”

    “मतलब तुम यहां मेरे लिए आए... मेरे पीछे पीछे...”

    “मुझे नहीं लगता मेरी बातों का यह मतलब निकलता है। मैं बस तुम्हें यही कहना चाहता हूं कि जब तुमने जाने का फैसला किया तो मैं भी खुद को रोक नहीं सका।”

    “तो उसका तो वही मतलब निकलता है ना जो मैंने कहा। तुम यहां मेरे पीछे पीछे आए।”

    आर्य झिझकते हुए बोला “पीछे पीछे आने का मतलब कुछ और होता है, खासकर लड़कियों के मामले में। तो उस तरह से मैं तुम्हारे पीछे पीछे नहीं आया... मैं दूसरी तरह से तुम्हारे पीछे पीछे आया।”

    “हां समझ गई बुद्धू..” हिना ने तिखी सी मुस्कान दी “तुम्हारे पीछे पीछे आने का मतलब। मैं भी तुम्हें उसी हिसाब से कह रही हूं, जिस हिसाब से तुम समझ रहे हो।”

    अचानक हिना ने आर्य को रुकने का इशारा किया। इशारा मिलते ही आर्य रुक गया। उसने हिना से पूछा “क्या हुआ... सब कुछ ठीक तो है ना?”

    “अभी बताती हूं।” हिना बोली और अपनी जेब से अंगूठी बाहर निकाली। अंगूठी निकालने के बाद उसने उसके अंदर से देखा। ‌ उनके ठीक कुछ कदमों की दूरी पर लाल रंग का सुरक्षा घेरा दिखाई दे रहा था। वह किसी बुलबुले की तरह था। “हम लोग सुरक्षा घेरे के पास पहुंच चुके हैं। अब यहां से आगे जाने का मतलब है... मुसीबत सर पर लेना।”

    आर्य ने सामने दाएं बाएं देखा। उसे कोई भी नहीं दिखाई दे रहा था। वह बोला “लेकिन मैं यहां किसी को भी नहीं देख पा रहा हूं। तुम्हारे भाई का भी कोई नामोनिशान नहीं। हमें आगे चलकर देखना होगा, तभी तुम्हारे भाई का पता चलेगा।”

    “मैं उसे एक बार आवाज लगाती हूं। क्या पता आवाज लगाने पर वह हमारी आवाज सुन ले।”

    “हां तुम कोशिश करो।”

    हिना ने अंगूठी को वापस जेब में रखा और दोनों हाथों को अपने मुंह पर रख कर जोर से आवाज लगाई “आयुध...”

    जंगली इलाके में उसकी आवाज गूंजती चली गई। ‌ उसने दोबारा आवाज लगाई। “आयुध...”

    एक बार फिर से जंगली इलाके में उसकी आवाज गूंजती चली गई। मगर प्रत्युत्तर में उसे किसी भी तरह का जवाब नहीं मिला।

    हिना के आवाज लगाने के बाद आर्य ने मशाल को वहां एक तरफ रखा और उसने भी अपने दोनों हाथों को मुंह पर रखकर आवाज लगाई। “आयुध...”‌ आर्य ने हिना से ज्यादा जोर का इस्तेमाल किया था। मगर उसकी आवाज के जवाब में भी किसी तरह का प्रतिउत्तर नहीं मिला।

    हिना अपने जुतों को पंजों के बल करते हुए सामने की ओर देखने लगी “यहां से आगे का इलाका नीचे ढलान लेता है। इस वजह से उसके पास जो मशाल थी उसकी रोशनी भी दिखाई नहीं दे रही। अगर हमें रोशनी दिख जाती तो ढूंढने में ज्यादा आसानी होती।”

    आर्य ने अपनी मशाल वापस उठा ली। मशाल उठाने के बाद उसने अपने कदम सामने की ओर बढ़ाना शुरू कर दिए। वह सुरक्षा चक्र के गहरे की तरफ जा रहा था। हिना भी उसके पीछे धीरे धीरे चलने लगी। उसने आर्य के पास आकर उसके कंधे को पकड़ लिया था। दोनों जब बिना अंगूठी के ना देखने वाले घेरे के पास पहुंचे तो उनके हाथ में जो मशाल थी उसकी आग की लपटें तेज हो गई। इन तरह के हालातों में हर एक सैकेंड हर साल की तरह बीतता हुआ प्रतीत हो रहा था।

    आर्य ने गहरी सांस ली और दो मोटे मोटे कदम भरकर पूरा आगे आ गया। उसके तेजी से आगे जाने की वजह से हिना पीछे ही रह गई थी। कुछ देर के लिए हिना घेरे के इस तरफ ही खड़ी रही वहीं आर्य घेरे के दूसरी ओर चला गया था। जब कुछ देर बीत गई तो आर्य पीछे पलटा “कोई खतरा नहीं है। आओ.... आगे जाकर तुम्हारे भाई की तलाश को पूरा करें।”

    हिना ने अपनी सांस को हल्क के नीचे उतारा, यहां एक पल के लिए उसकी सांसे पूरी तरह से थम गई थी। इसके बाद वह आगे गई और आर्य के पास आ गई। आर्य के पास आने के बाद वह कुछ देर के लिए इधर-उधर देखती रही। इसके बाद उसने भी सांस छोड़ते हुए कहा “ हां कोई खतरा नहीं है... चलो आगे बढ़े।”

    दोनों ही आगे बढ़ने लगे, मगर इस बात से अनजान की जहां वह दोनों खड़े थे वहां ऊपर के पेड़ों पर कुछ लाल आंखें उन्हें घूर रही थी।

    ★★★

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2 Comments

Horror lover

18-Dec-2021 04:44 PM

Hina aur Arya khani ki jan bn rhe hn...

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Seema Priyadarshini sahay

08-Dec-2021 08:51 PM

बहुत सुंदर सस्पेंस के साथ ।👌👌

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